- विद्या ददाति विनयम्,विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
संस्कृत के इस श्लोक के अनुसार –
“विद्या विनय प्रदान करती है,विनय से पात्रता की प्राप्ति होती है,पात्रता से धन की प्राप्ति होती है,धन से धर्म की प्राप्ति होती है और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है।”
सामान्यतः ‘शिक्षा’और ‘विद्या’ शब्द पर्याय के रूप में जाने जाते हैं,जबकि इन दोनों के तत्त्वार्थ भिन्न हैं।
शिक्षा का अर्थ है-सीखना। इस ‘सीखे हुए’ को भली प्रकार जानना ज्ञान कहलाता है और इस ज्ञान को आत्मसात् कर के उसमें पारंगत हो जाना ‘विद्या’ कहलाता है। विद्या केवल सूचनाएं एकत्रित करने का साधन नहीं,बल्कि विद्या पूर्णता देती है ।
शिक्षा सीखने- सिखाने की विधि है परन्तु विद्या प्राप्त करके व्यक्ति विद्वान हो जाता है। शिक्षा व्यक्ति के चरित्र में उतर जाए यह आवश्यक नहीं परन्तु विद्या विद्वान के प्रत्येक कार्यकलाप में झलकती है,क्योंकि विद्या से विवेक प्राप्त होता है, विनम्रता आती है, आत्मविकास की यात्रा आगे बढ़ती है। विद्या से पात्रता अर्जित होती है,शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति अहंकारी हो सकता है लेकिन विद्यावान व्यक्ति विनम्र होता है ठीक वैसे ही जैसे फलों से लदा वृक्ष झुक जाता है और पत्थर मारने वाले को भी फल देता है उसी तरह विद्वान् व्यक्ति विनम्रता से सभी को प्रेमपूर्वक अपनी विद्या का दान देता है। शिक्षा प्राप्त करके हो सकता है किसी व्यक्ति को कोई नौकरी न भी मिले परन्तु जब कोई व्यक्ति किसी विद्या में पारंगत हो जाता है तो वह विद्या देश हो या विदेश धनोपार्जन का साधन बन जाती है और विद्यावान व्यक्ति इस धन का विवेकपूर्वक प्रयोग करके सुख को प्राप्त करता है और सबसे बढ़कर विद्या में जो विशिष्टता है वह यह कि विद्या विमुक्त करती है। कहा भी गया है –
सा विद्या या विमुक्तये
‘विमुक्त’ का अर्थ है विशेष रूप से मुक्ति। यह मुक्ति जन्म-मरण के चक्कर से भी हो सकती है लेकिन सामान्य दृष्टिकोण से यदि देखें तो यह मुक्ति होती है-निम्न वासनाओं से,घृणा से, द्वेष से,समस्त निम्न प्रवृत्तियों से। विद्या श्रेष्ठता के मार्ग पर ले जाकर व्यक्ति को निरन्तर ऊर्ध्वगामी बना देती है। परा विद्या से अपरा विद्या की ओर उन्मुख करती है। जीवन के चरम और परम लक्ष्य तक पहुंचा देती है।
देव समाज के प्रवर्तक परम पूजनीय भगवान देवात्मा जी के लोक कल्याणकारी जीवन और उनके जीवन दर्शन से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि वे परम विद्वान थे और उन्होंने धर्म की विज्ञानमूलक व्याख्या संसार को देकर यह सिद्ध कर दिया कि उनका जीवन लक्ष्य कितना महान था ।
देव समाज कॉलेज फॉर गर्ल्स ,अम्बाला शहर हरियाणा का प्राचीनतम महिला कॉलेज है, जो 1934 में लाहौर में और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1948 में अंबाला शहर में पूज्य भगवान देवात्मा जी की सद्प्रेरणा से स्थापित हुआ, जिन्होंने नारी शिक्षा के लिए अनेकों प्रयास किए।यहाँ विद्यार्थियों को केवल किताबी शिक्षा ही नहीं दी जाती बल्कि उन्हें नैतिक शिक्षा के माध्यम से जीवन के उच्चतम लक्ष्य से भी अवगत करवाया जाता है।कॉलेज की सभी प्राध्यापिकाएँ पूर्ण मनोयोग से विद्यार्थियों के भीतर छिपी क्षमताओं को उजागर करने में उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में तथा उनके व्यक्तित्व का चहुंमुखी विकास करने की दिशा में तत्पर हैं।
कॉलेज में एन एस एस, यूथ रैडक्रास, वुमेन सैल,यूथ वैल्फेयर सोसायटी इको क्लब,लिट्रेरी क्लब,सोशल साईंस फॉरम आदि इकाइयां सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। कॉलेज में सभी विशेष दिवस और उत्सव बढ़े उमंग और उत्साह से मनाए जाते हैं, जिनका उद्देश्य विद्यार्थियों को अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश से परिचित करवाना है।कॉलेज के पास एक समृद्ध पुस्तकालय है, जिसमें हर विषय से संबंधित पुस्तकों का भण्डार है।इसके अतिरिक्त पारिवारिक वातावरण हमारे कॉलेज की अन्यतम विशेषता है।
कॉलेज का लक्ष्यसूत्र है- ‘Aquire Knowledge & Form Character ‘ हम सभी इसी भावना से कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।यह हमारा परम सौभाग्य है कि हमें देव समाज परिषद के सुयोग्य ,समर्पित एवं कर्त्तव्यनिष्ठ पदाधिकारियों का मार्गदर्शन प्राप्त है जिनमें परम सम्माननीय श्री मान निर्मल सिंह जी ढिल्लों (सैक्रेटरी, देव समाज परिषद), श्री मान जगदीश चंद्र भारद्वाज जी (चेयरमैन, कॉलेज मैनेजिंग कमेटी) तथा मैनेजिंग कमेटी के अन्य सदस्य शामिल हैं।
मैं अपने महाविद्यालय की छात्राओं के मंगलमय उज्ज्वल भविष्य की शुभकामना करती हूँ।
—
Mrs. Mukta Arora
PrincipalDev Samaj College for Girls
Ambala City